प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुत्तनी नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी था जो एक सरकारी अधिकारी थे। राधाकृष्णन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा तिरुत्तनी और तिरुपति में प्राप्त की।

उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से दर्शनशास्त्र में एम.ए. किया और इस विषय में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए छात्रवृत्ति प्राप्त की। 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्रोफेसर के रूप में उन्होंने अपने शैक्षणिक करियर की शुरुआत की।
शैक्षणिक करियर
डॉ. राधाकृष्णन ने 1918 में मैसूर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। 1921 में उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के किंग जॉर्ज V चेयर पर नियुक्त किया गया। 1931 से 1936 तक वे आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति रहे।
1936 से 1939 तक उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पूर्वी धर्म और नैतिकता के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। 1939 से 1948 तक वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति रहे।
राजनीतिक करियर
1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, डॉ. राधाकृष्णन को यूनेस्को में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने के लिए चुना गया। 1949 से 1952 तक वे सोवियत संघ में भारत के राजदूत रहे।
1952 में उन्हें भारत का उपराष्ट्रपति चुना गया और 1957 में वे दूसरे कार्यकाल के लिए पुनः चुने गए। 13 मई 1962 को उन्हें भारत के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में चुना गया। 1967 तक वे इस पद पर रहे।
पुरस्कार और सम्मान
1931 में डॉ. राधाकृष्णन को नाइटहुड की उपाधि से सम्मानित किया गया। 1954 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 1962 से उनके जन्मदिन 5 सितंबर को भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
प्रमुख रचनाएँ
डॉ. राधाकृष्णन ने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं जिनमें शामिल हैं:
- द हिन्दू व्यू ऑफ लाइफ
- इंडियन फिलॉसफी
- द फिलॉसफी ऑफ रवींद्रनाथ टैगोर
- रिकवरी ऑफ फेथ
- ईस्ट एंड वेस्ट: सम रिफ्लेक्शंस
निजी जीवन
1904 में डॉ. राधाकृष्णन का विवाह शिवकामु से हुआ था। उनकी पांच बेटियां और एक बेटा था। 17 अप्रैल 1975 को 86 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
एफएक्यू (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
प्रश्न 1: डॉ. राधाकृष्णन का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुत्तनी नामक स्थान पर हुआ था।
प्रश्न 2: डॉ. राधाकृष्णन ने कौन-कौन से विश्वविद्यालयों में पढ़ाया?
उत्तर: उन्होंने मद्रास, मैसूर, कलकत्ता, ऑक्सफोर्ड और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ाया।
प्रश्न 3: डॉ. राधाकृष्णन भारत के राष्ट्रपति कब बने?
उत्तर: वे 13 मई 1962 को भारत के दूसरे राष्ट्रपति बने और 1967 तक इस पद पर रहे।
प्रश्न 4: शिक्षक दिवस क्यों मनाया जाता है?
उत्तर: डॉ. राधाकृष्णन के जन्मदिन 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है क्योंकि वे एक महान शिक्षक थे।
प्रश्न 5: डॉ. राधाकृष्णन को कौन-कौन से प्रमुख सम्मान मिले?
उत्तर: उन्हें नाइटहुड (1931) और भारत रत्न (1954) से सम्मानित किया गया।
प्रश्न 6: डॉ. राधाकृष्णन की प्रमुख पुस्तकें कौन-सी हैं?
उत्तर: ‘द हिन्दू व्यू ऑफ लाइफ’, ‘इंडियन फिलॉसफी’ और ‘द फिलॉसफी ऑफ रवींद्रनाथ टैगोर’ उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।
प्रश्न 7: डॉ. राधाकृष्णन का निधन कब हुआ?
उत्तर: 17 अप्रैल 1975 को 86 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
प्रश्न 8: डॉ. राधाकृष्णन ने कौन-कौन से राजनीतिक पद संभाले?
उत्तर: वे भारत के उपराष्ट्रपति (1952-1962) और राष्ट्रपति (1962-1967) रहे।
प्रश्न 9: डॉ. राधाकृष्णन के बारे में एक रोचक तथ्य?
उत्तर: जब वे राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने अपने वेतन का आधा हिस्सा लेने से इनकार कर दिया।
प्रश्न 10: डॉ. राधाकृष्णन का दर्शनशास्त्र में क्या योगदान था?
उत्तर: उन्होंने पूर्व और पश्चिम के दर्शन को जोड़ने का कार्य किया और हिंदू दर्शन को वैश्विक पहचान दिलाई।
निष्कर्ष
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के इतिहास में एक विशिष्ट व्यक्तित्व थे जिन्होंने शिक्षा, दर्शन और राजनीति तीनों क्षेत्रों में अद्वितीय योगदान दिया। एक महान शिक्षक, विद्वान दार्शनिक और कुशल राजनेता के रूप में उन्होंने भारतीय संस्कृति और दर्शन को विश्व पटल पर गौरवान्वित किया।
उनका जीवन शिक्षकों और छात्रों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने शिक्षा को मानव जीवन का आधार माना और ज्ञान के प्रसार को राष्ट्र निर्माण का मूलमंत्र समझा। भारत रत्न से सम्मानित यह महान विभूति आधुनिक भारत के निर्माताओं में से एक थे।
डॉ. राधाकृष्णन का विश्वास था कि “शिक्षा का उद्देश्य मात्र जानकारी देना नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण करना है”। आज भी उनके ये विचार प्रासंगिक हैं और भारतीय शिक्षा व्यवस्था को दिशा देते हैं। उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाना हमारे लिए गर्व की बात है।
अंत में कहा जा सकता है कि डॉ. राधाकृष्णन ने अपने ज्ञान, विवेक और सेवाभाव से न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व को प्रभावित किया। वे सच्चे अर्थों में एक ‘राष्ट्रपति-दार्शनिक’ थे जिनकी विरासत हमेशा प्रेरणा देती रहेगी।